बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत बीए सेमेस्टर-1 संस्कृतसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 संस्कृत
प्रश्न- प्राचीन भारतीय संगीत के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
भारत की सभ्यता व संस्कृति उसकी अपनी है। इस सभ्यता व संस्कृति का विकास आज भी चल रहा है। वेद, वेदाङ्ग पुराण नाट्य, धर्म शास्त्रादि इन सबमें संगीत के अस्तित्व को भी स्वीकारा गया है तथा बौद्धिक काल से लेकर आज तक संगीत के क्रियात्मक और शास्त्रीय क्षेत्र में हुए विद्वानों के योगदानों को अभिव्यक्त किया गया है। संगीत के संपूर्ण इतिहास को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं -
1. प्राचीन काल (आदिकाल से 1800 ई. तक)
2. मध्य काल (1800 ई. से 1600 ई. तक)
3. आधुनिक काल (1600 ई. से आज तक)
प्राचीन काल - इस काल का आरम्भ आदिकाल से माना जाता है। संगीत की दृष्टि से वैदिक काल प्राचीनतम युग है। इस काल में वेदों की रचना हुई है। वेदों में सामवेद तो संगीत की दृष्टि से पूर्णतया स्वीकारा गया है। इसके मंत्रों का पाठ अभी भी संगीतमय होता है। सामवेद के गायन में केवल तीन स्वर प्रयोग किये जाते थे -
1. स्वरित (स). 2. उदात्त (रे). 3. अनुदात्त (नि)।
याज्ञवल्क्य और पाणिनि मुनि के अनुसार सात स्वरों की उत्पत्ति इन्हीं तीन स्वरों से हुई है "उदात्ते निषाद गान्धारौ, अनुदात्ते ऋषभ धैवतौ शेषस्तु स्वरितः गेया षडज मध्यम पंचमाः '
इस प्रकार उदात्त से नि और ग, अनुदात्त से ध और रे तथा स्वरित से स, म, प स्वरों की उत्पत्ति हुई है।
'छान्दोग्य' और बृहदारण्यक उपनिषदों में भी संगीत का उल्लेख मिलता है और अनेक संगीत वाद्यों के नाम भी मिलते हैं. जैसे- वेणी वीणा दुंदभी आदि। इस प्रकार वैदिक काल में संगीत का पूर्ण विकास हुआ।
रामायण काल - रामायण काल में तत्कालीन सामाजिक जीवन में संगीत के महत्व की जानकारी मिलती है। रामायण में विभिन्न प्रकार के वादयों की जानकारी व अनेक प्रकार की संगीत उपमाओं का उल्लेख मिलता है और यह सिद्ध होता है कि यद्यपि संगीत ग्रन्थ नहीं मिलते फिर भी संगीत का प्रचारबराबर चलता रहा।
महाभारत काल - इस काल में भी संगीत उन्नत अवस्था में था। वेदव्यास द्वारा रचित 'महाभारत' और श्रीकृष्ण की "भगवद्गीता' में सभी श्लोक संगीतमय हैं। 'महाभारत' में सात स्वरों और गांधार ग्राम का भी वर्णन मिलता है। महाभारत काल के बाद पाणिनी रचित अष्टाध्यायी में भी सात स्वरों और ग्राम का वर्णन मिलता है। पाणिनी शिक्षा में भी संगीत की पर्याप्त सामग्री मिलती है।
बौद्ध काल - इस काल में महात्मा बुद्ध ने संगीत के माध्यम से मानव हित व कल्याण के लिए सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। जिसके फलस्वरूप संगीत का आध्यात्मिक पक्ष निखरकर आया।
मौर्य युग - इस काल में सम्राट अशोक ने संगीत की गौरवमयी परम्परा को विदेशों में स्थापित किया। प्रस्तर एवं ताम्रादि शिलालेखों में गुण-गान के लिए पद्यमर्या या गीतात्मक शैली अपनायी गई।
शुंग काल - इस काल में संगीत के प्रसिद्ध विद्वान आचार्य पतञ्जलि द्वारा लिखित ग्रन्थ 'महाभाष्य में संगीत के चारों अंगों का उल्लेख मिलता है।
कनिष्क काल - इस काल में संगीत का प्रचार अन्य देशों में खूब हुआ। चीन, रोमादि के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध स्थापित किये गये, जिसमें संगीत का प्रचार-प्रसार साहित्य के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में मिलता है।
भरत काल- यह काल संगीत की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इसे संगीत का नवीन भी माना जाता है। भरत कृत 'नाट्यशास्त्र की रचना इसी काल में हुई। इसी कारण इसे भरत काल कहा जाता है। अधिकांश विद्वानों द्वारा इस ग्रन्थ का समय 5वीं शताब्दी माना गया है। यह पुस्तक नाट्य के सम्बन्ध में लिखी गई है जिसमें कुल 36 अध्याय हैं, जिसके अन्तिम छः अध्यायों में संगीत विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इससे यह सिद्ध होता है कि उस समय संगीत और नाट्य का बहुत गहरा सम्बन्ध था। नाट्यशास्त्र को नादशास्त्र, मोक्षशास्त्र तथा योगशास्त्र भी कहा जा सकता है। इस ग्रन्थ में संगीत से सम्बन्धित निम्न विषयों का उल्लेख है-
1. भरत ने केवल मध्यम व षडज ग्राम का वर्णन किया। इसमें गांधार ग्राम का उल्लेख नहीं मिलता।
2. षडज ग्राम की 7 और मध्यम ग्राम की 11. कुल मिलाकर 18 जातियों का वर्णन किया है। इसको पुनः 2 भागों में विभाजित किया गया - शुद्ध व विकृत। षडज और मध्यम ग्राम दोनों की शुद्ध व विकृत जातियों मिलती है।
3. जाति के 10 लक्षण माने गये हैं - ग्रह, अंश, तार, मंद्र, न्यास, अपन्यास, अल्पत्व, बहुत्व, षाडवत्व एवं औद्रवत्व।
4. केवल काकिली निषाद अंतरगाधार विकृत स्वर माने गए हैं।
5. वादी, संवादी स्वरों की पूरी 6 या 13 श्रुतियाँ मानी गयी हैं।
6. स म प की चार-चार श्रुतियाँ, गनि की दो-दो श्रुतियाँ तथा रे, ध की तीन-तीन श्रुतियों मानी गई है।
गुप्तकाल - भरत काल के बाद गुप्त युग का आविर्भाव हुआ। इस युग में भरत के पुत्र दत्तिल द्वारा लिखा 'दत्तिलम्' नामक संगीत ग्रन्थ मिलता है। इसका रचनाकाल पाँचवी शताब्दी के आस-पास माना जाता है। इसमें भरत के नाट्यशास्त्र' के विपरीत गांधार ग्राम का उल्लेख मिलता है। विवादी स्वरों की दूरी 2 श्रुतियों की मानी गई है। संवादी स्वरों की दूरी भरत के समान ही मानी गई है। 18 जातियाँ भरत के समान ही हैं। इस काल में महान संगीतज्ञ चन्द्रगुप्त के दरबार में विजय प्राप्त करने के बाद संगीत के आयोजन होते थे। इसी काल में समुद्रगुप्त भी एक कुशल वीणावादक थे। इस काल में ऐसे गीतों की रचना हुई जिसमें हिंदुस्तानी संस्कृति व सभ्यता का चित्रण होता था। इस काल में अनेक राग-रागनियों का प्रचलन था।
इसके पश्चात् चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का समय आता है। इस काल में संगीत यूरोपीय देशों में . पहुँचा। इस काल में महान कवि व नाटककार कालिदास हुए जिन्होंने 'कुमारसंभव', 'मेघदूत' व 'ऋतुसंहार' जैसे अनुपम गीत-काव्यों का निर्माण किया।
हर्षवर्धन युग - 606 ई. में हर्षवर्धन राजसिंहासन पर बैठे। संगीत प्रेमी होने के कारण इनके राज्य में संगीत सभाओं का आयोजन होता था। संगीत का प्रचार व प्रसार मुख्यतः नाटकों के माध्यम से होता था। इस युग में छठी शताब्दी के अंत तथा सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में मतंगकृत 'बृहद्देशी ग्रंथ का उल्लेख मिलता है।
भरतकृत 'नाट्यशास्त्र' के समान यह ग्रन्थ भी संगीत के विकास में बहुत महत्वपूर्ण है। मतंग मुनि ने इस ग्रन्थ में देशी रागो का विवरण दिया है इसलिए इस ग्रन्थ का नाम 'बृहद्देशी' है। इसमें नाद के पाँच मेंद माने हैं। मतंग ने ग्राम व मूर्च्छना की विस्तृत परिभाषा दी है और ग्राम राग का भी वर्णन किया है। भरतकाल में रागों का अस्तित्व नहीं था। राग का उल्लेख सर्वप्रथम मतंग की 'बृहद्देशी' में उपलब्ध होता हैं। मतंग ने रागों का वर्गीकरण 'ग्राम राग' व भाषा राग' आदि सात गीतियों में किया है। मतंग के 'बृहददेशी ग्रंथ के अतिरिक्त 7वीं च्वी शताब्दी में नारद कृत 'नारदीय शिक्षा' और 'संगीत मकरंद आदि ग्रन्थ भी प्रकाश में आए हैं। मतंग के बाद नारद ने भी संगीत की विवेचना की है। इस ग्रन्थ में उपलब्ध संगीत सामग्री का शास्त्रीय विषय 'सामगान' था। इस समय भक्ति और संगीत से मिली-जुली धार्मिक भावना के संयोग से संगीत का यथेष्ट प्रचार हुआ।
राजपूतकालीन संगीत - मौर्य व गुप्तकाल में जो संगीत की स्थिति थी वह न रह सकी। राजपूत युद्ध प्रिय जाति थी। वह संगीत के आत्मिक सौन्दर्य को न समझ सकी। संगीत के क्षेत्र में जो घरानों का क्रम चला, वह राजपूत काल की ही देन थी। इस घराने की विचारधारा ने संगीत के विकास को अवरुद्ध कर दिया। यही कारण था कि राजपूत काल में संगीत का विकास न हो सका। फिर भी इस युग में भवभूति की 'महावीर चरित' और' मालतीमाधव' जैसे संगीतमय नाटकों में संगीत की सुन्दर अभिव्यक्ति हुई है। राजपूतकालीन राग-रागनियों के चित्र भी मिलते हैं।
इसके अतिरिक्त इस काल में जयदेव कृत 'गीत गोंविद की भी रचना हुई है। जयदेव कवि होने के साथ-साथ गायक भी थे। इसमें राधा और कृष्ण से सम्बन्धित प्रबंध गीत हैं तथा प्रत्येक अष्टपदी पर राग और ताल के निर्देश उपलब्ध होते हैं।
इस प्रकार भारतीय प्राचीन सगीत ने अपना सर्वांगीण विकास कर लिया था जो सामवेद के सामगान से प्रारम्भ हुआ था। संगीत का क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत है। अतएव मध्यकाल और आधुनिक काल में भी संगीत सम्बन्धी कई ग्रन्थ लिखे गये। आज भी संगीत को नये-नये सुरों से सजाया जाता है और सजाया जाता रहेगा।
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- प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भूगोल एवं खगोल विषयों का अन्तः सम्बन्ध बताते हुए, इसके क्रमिक विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारत का सभ्यता सम्बन्धी एक लम्बा इतिहास रहा है, इस सन्दर्भ में विज्ञान, गणित और चिकित्सा के क्षेत्र में प्राचीन भारत के महत्वपूर्ण योगदानों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित आचार्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये - 1. कौटिल्य (चाणक्य), 2. आर्यभट्ट, 3. वाराहमिहिर, 4. ब्रह्मगुप्त, 5. कालिदास, 6. धन्वन्तरि, 7. भाष्कराचार्य।
- प्रश्न- ज्योतिष तथा वास्तु शास्त्र का संक्षिप्त परिचय देते हुए दोनों शास्त्रों के परस्पर सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'योग' के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट करते हुए, योग सम्बन्धी प्राचीन परिभाषाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आयुर्वेद' पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- कौटिलीय अर्थशास्त्र लोक-व्यवहार, राजनीति तथा दण्ड-विधान सम्बन्धी ज्ञान का व्यावहारिक चित्रण है, स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय संगीत के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक भारतीय दर्शनों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय षड् दर्शनों के नाम व उनके प्रवर्तक आचार्यों के नाम लिखिये।
- प्रश्न- मानचित्र कला के विकास में योगदान देने वाले प्राचीन भूगोलवेत्ताओं के नाम बताइये।
- प्रश्न- भूगोल एवं खगोल शब्दों का प्रयोग सर्वप्रथम कहाँ मिलता है?
- प्रश्न- ऋतुओं का सर्वप्रथम ज्ञान कहाँ से प्राप्त होता है?
- प्रश्न- पौराणिक युग में भारतीय विद्वान ने विश्व को सात द्वीपों में विभाजित किया था, जिनका वास्तविक स्थान क्या है?
- प्रश्न- न्यूटन से कई शताब्दी पूर्व किसने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त बताया?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय गणितज्ञ कौन हैं, जिसने रेखागणित सम्बन्धी सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया?
- प्रश्न- गणित के त्रिकोणमिति (Trigonometry) के सिद्धान्त सूत्र को प्रतिपादित करने वाले प्रथम गणितज्ञ का नाम बताइये।
- प्रश्न- 'गणित सार संग्रह' के लेखक कौन हैं?
- प्रश्न- 'गणित कौमुदी' तथा 'बीजगणित वातांश' ग्रन्थों के लेखक कौन हैं?
- प्रश्न- 'ज्योतिष के स्वरूप का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- वास्तुशास्त्र का ज्योतिष से क्या संबंध है?
- प्रश्न- त्रिस्कन्ध' किसे कहा जाता है?
- प्रश्न- 'योगदर्शन' के प्रणेता कौन हैं? योगदर्शन के आधार ग्रन्थ का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- क्रियायोग' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- 'अष्टाङ्ग योग' क्या है? संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- 'अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस' पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आयुर्वेद का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आयुर्वेद के मौलिक सिद्धान्तों के नाम बताइये।
- प्रश्न- 'कौटिलीय अर्थशास्त्र' का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य क्या है? अर्थात् काव्य की परिभाषा लिखिये।
- प्रश्न- काव्य का ऐतिहासिक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- संस्कृत व्याकरण का इतिहास क्या है?
- प्रश्न- संस्कृत शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई? एवं संस्कृत व्याकरण के ग्रन्थ और उनके रचनाकारों के नाम बताइये।
- प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास की कृतियों का उल्लेख कर महाकाव्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्य शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कालिदास से पूर्वकाल में संस्कृत काव्य के विकास पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्यगत विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के पश्चात् होने वाले संस्कृत काव्य के विकास की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महर्षि वाल्मीकि का संक्षिप्त परिचय देते हुए यह भी बताइये कि उन्होंने रामायण की रचना कब की थी?
- प्रश्न- क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि माघ में उपमा का सौन्दर्य, अर्थगौरव का वैशिष्ट्य तथा पदलालित्य का चमत्कार विद्यमान है?
- प्रश्न- महर्षि वेदव्यास के सम्पूर्ण जीवन पर प्रकाश डालते हुए, उनकी कृतियों के नाम बताइये।
- प्रश्न- आचार्य पाणिनि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आचार्य पाणिनि ने व्याकरण को किस प्रकार तथा क्यों व्यवस्थित किया?
- प्रश्न- आचार्य कात्यायन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आचार्य पतञ्जलि का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आदिकवि महर्षि बाल्मीकि विरचित आदि काव्य रामायण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- श्री हर्ष की अलंकार छन्द योजना का निरूपण कर नैषधं विद्ध दोषधम् की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महर्षि वेदव्यास रचित महाभारत का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाभारत के रचयिता का संक्षिप्त परिचय देकर रचनाकाल बतलाइये।
- प्रश्न- महाकवि भारवि के व्यक्तित्व एवं कर्त्तव्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- महाकवि हर्ष का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भारवि की भाषा शैली अलंकार एवं छन्दों योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'भारवेर्थगौरवम्' की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रामायण के रचयिता कौन थे तथा उन्होंने इसकी रचना क्यों की?
- प्रश्न- रामायण का मुख्य रस क्या है?
- प्रश्न- वाल्मीकि रामायण में कितने काण्ड हैं? प्रत्येक काण्ड का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- "रामायण एक आर्दश काव्य है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- क्या महाभारत काव्य है?
- प्रश्न- महाभारत का मुख्य रस क्या है?
- प्रश्न- क्या महाभारत विश्वसाहित्य का विशालतम ग्रन्थ है?
- प्रश्न- 'वृहत्त्रयी' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारवि का 'आतपत्र भारवि' नाम क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' तथा 'आर्जवं कुटिलेषु न नीति:' भारवि के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- 'महाकवि माघ चित्रकाव्य लिखने में सिद्धहस्त थे' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- 'महाकवि माघ भक्तकवि है' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- श्री हर्ष कौन थे?
- प्रश्न- श्री हर्ष की रचनाओं का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'श्री हर्ष कवि से बढ़कर दार्शनिक थे।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- श्री हर्ष की 'परिहास-प्रियता' का एक उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- नैषध महाकाव्य में प्रमुख रस क्या है?
- प्रश्न- "श्री हर्ष वैदर्भी रीति के कवि हैं" इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- 'काश्यां मरणान्मुक्तिः' श्री हर्ष ने इस कथन का समर्थन किया है। उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- 'नैषध विद्वदौषधम्' यह कथन किससे सम्बध्य है तथा इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'त्रिमुनि' किसे कहते हैं? संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भारवि का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी काव्य प्रतिभा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारवि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- किरातार्जुनीयम् महाकाव्य के प्रथम सर्ग का संक्षिप्त कथानक प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- 'भारवेरर्थगौरवम्' पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- भारवि के महाकाव्य का नामोल्लेख करते हुए उसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की कथावस्तु एवं चरित्र-चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- किरातार्जुनीयम् की रस योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य-कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'वरं विरोधोऽपि समं महात्माभिः' सूक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए ।
- प्रश्न- कालिदास की जन्मभूमि एवं निवास स्थान का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास की कृतियों का उल्लेख कर महाकाव्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास की काव्य शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि कालिदास संस्कृत के श्रेष्ठतम कवि हैं।
- प्रश्न- उपमा अलंकार के लिए कौन सा कवि प्रसिद्ध है।
- प्रश्न- अपनी पाठ्य-पुस्तक में विद्यमान 'कुमारसम्भव' का कथासार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कालिदास की भाषा की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कालिदास की रसयोजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कालिदास की सौन्दर्य योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य' की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि के जीवन-परिचय पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नीतिशतक' में लोकव्यवहार की शिक्षा किस प्रकार दी गयी है? लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि की कृतियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भर्तृहरि ने कितने शतकों की रचना की? उनका वर्ण्य विषय क्या है?
- प्रश्न- महाकवि भर्तृहरि की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नीतिशतक का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- धीर पुरुष एवं छुद्र पुरुष के लिए भर्तृहरि ने किन उपमाओं का प्रयोग किया है। उनकी सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विद्या प्रशंसा सम्बन्धी नीतिशतकम् श्लोकों का उदाहरण देते हुए विद्या के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भर्तृहरि की काव्य रचना का प्रयोजन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भर्तृहरि के काव्य सौष्ठव पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- 'लघुसिद्धान्तकौमुदी' का विग्रह कर अर्थ बतलाइये।
- प्रश्न- 'संज्ञा प्रकरण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- माहेश्वर सूत्र या अक्षरसाम्नाय लिखिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए - इति माहेश्वराणि सूत्राणि, इत्संज्ञा, ऋरषाणां मूर्धा, हलन्त्यम् ,अदर्शनं लोपः आदि
- प्रश्न- सन्धि किसे कहते हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हल सन्धि किसे कहते हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए।